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बुधवार, 1 जुलाई 2015

कविता-१८८ : "कविता..."

कोशिश...

मेरे अश्रुओं से सने
हर एक अहसास को
उकेरने की.....


कविता....

भीगी मिट्टी से उपजी
सौंधी खुशबू से विभोर मेरे
अंतस से सृजित
अरुणोदय की प्रथम किरण सी

कविता.....
तुम्हारे केशो में भीगी /लिपटी
उस नन्ही बूँद सी....

सच...
कविता तुम्हारे मेरे मिलन की
परछाई सी.....
कविता तुम जैसी ही
और तुम
कविता जैसी ही...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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