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शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

कविता-१९० : "ऐ चाँद... तुम पास हो..."

बहुत...

पास हो तुम , ए चाँद

कभी बचपन के मामा
तो कभी मेरे खाली पेट की
गोल रोटी
तो कभी प्रेमिका के चेहरे में
कभी करवाचौथ पर जीवनसंगिनी
की आस्था में
चाँद सिर्फ तुम ही......

और अब तो खुद भी दिखने लगा हूँ
तुममे
लगता है मैं तुम्हारे पास हूँ
या शायद तुम उतर आये
धरती पर....


सच...

चाँद तुम बहुत पास हो...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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