मंगलवार, 30 जून 2015
कविता-१८७ : "कायाकल्प..."
पाषाण की अहिल्या
स्पर्श से राम के
जीवन्त हो गई...
तय मानो.....
मेरी देह की मिट्टी
का भी....
हुआ होगा
'कायाकल्प'
तुम्हारे छूने से ही
निश्चित ही....
'माँ'...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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