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बुधवार, 17 जून 2015

कविता-१७४ : "तुमसे मैं... मुझसे तुम..."


मेरी परेशानी पर हंसा देते थे तुम

पर तुम्हारी परेशानी पर
तुम क्यों नहीं हँसते क्यों नहीं हंसाते
जबकि जानते हो कि
तुम जो रहोगे परेशांन तो मै भी
कहाँ ठहरती है मुस्कान 
मेरे चेहरे पर...

ये परस्पर संबंधो की प्रगाढ़ता ही है
और हमारी अंतरंगता जन्मो की
कि तुमसे तो ही मै हूँ
और मुझसे ही तुम...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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