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बुधवार, 10 जून 2015

कविता-१६९ : "मेरे तुम्हारे बीच..."


मेरे तुम्हारे बीच...

सम्भावनाये कहाँ है शेष
औरो की तरह...

प्यार तकरार सच झूठ
और दुनिया की झूटी रस्मो
रिवाजो से
बहुत ऊपर हो चुके तुम और मै...

मॉस की पिंडलो से बने शरीर
अलग अलग जरुर हैं
पर आत्माये तो एक ही..

जब दो होकर भी हो गये
एक ही तो
क्या बचा ?
मेरे तुम्हारे बीच
सिर्फ हम और हमारी
जिन्दगी
है न...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

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