कैसा ?
क्योकि दे सकता परिभाषा
तो प्यार ही नहीं लिखता
वर्षो से लिखना चाहता हूँ प्यार
पर,
लिख पाता कहाँ
और तेरा नाम लिखकर ही
प्यार को पा लेता हूँ
पर,
ये कलम सिर्फ तेरे नाम से
संतुष्ट कहाँ
और भी कुछ लिखना चाहती है
एक और नाम
उफ्फ्फ्फ़
कहीं मुझे फिर से
किसी से
हो तो नही गया
प्यार...
कोई अब ये न कहना
बताता हूँ ये
घरवाली को...
हुआ तो हुआ...
प्यार ही तो है
पल भर के लिए ही सही...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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