शनिवार, 20 जून 2015
कविता-१७७ : "तुम और मैं..."
मै हूँ , तुम हो...
और नहीं कोई....
जब..
मै में मै हूँ
तुममे तुम...
और...
तुममे मै हूँ
मै में तुम...
तब...
कोई कहाँ
रह जाता है
शेष ???
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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