मंगलवार, 2 जून 2015
कविता-१६१ : "प्रेम..."
मेरे प्रेम
उड़ रहा तू नील गगन में
जहाँ तक नहीं पहुँचते
मेरे हाँथ
तेरे पैर पकड़ने...
स्वतंत्र तू चिड़िया के
माफिक...
मैं धरा पर बोझ हूँ...
काश...
होते पंख मेरे
तो उड़ता संग तेरे
हौले-हौले...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
1 टिप्पणी:
Hayat Singh
17 जून 2015 को 4:31 am बजे
काश होते पंख मेरे ....
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काश होते पंख मेरे ....
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