गुरुवार, 11 जून 2015
कविता-१७० : "वजह... बेवजह..."
मिलना तुमसे...
वजह थी
तेरे संग संग चलना
ये भी वजह
तुमसे अथाह प्रेम
वजह ही...
अपना रिश्तो का वजूद
वजह से ही....
पर तुम्हारा मौन
तुम्हारी जुदाई...
या यूँ कहे साफ़ साफ़
बेवफाई
तुम्हारी
बेबजह...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________
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