पतंग उड़ रही थी
आकाश में
पूरे विश्वास
के साथ
कि अचानक आ गई एक और
पतंग उड़ती हुई...
एक ऊपर, एक नीचे
कहाँ रुक पाई
वो फिर
अभिमान के मद में...
क्यों न हो ?
आखिर उनकी ड़ोर
भी तो
इंसान के पास
ही थी
और लड़ गई /चढ़ गई
एक दूसरे के
ऊपर
और अंततः उनकी ये टकराहट
चूर ही हो गई
जब एक कट गई एक फट गई
और गिर गई जमी
पर..
कट गया /फट गया
और नष्ट हो गया
अभिमान पतंग का
या इंसान का ??
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.............आपका अपना.... ‘अखिल जैन’
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