ह्रदय में रहता था
मैं
तुमने ही कहा था ऐसा
मुझसे...
हृदय से बह गया
हूँगा
रक्त में, निश्चित ही
और....
रक्त वाहिकाओं में
घुल कर
पहुँच गया हूँगा
शरीर के प्रत्येक
हिस्से में
आँखे भी तो देह ही
है
फिर क्यों न बहता
अश्को के संग
तुमने ह्रदय से
निकाल
भी तो दिया, मुझे
न रोको फिर...
अश्को को बहने दो
अब बहने ही दो
और संग उनके
मुझको भी...
.
.
.
हाँ...!!!
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_____आपका
अपना ‘अखिल जैन’____
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