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मंगलवार, 27 जनवरी 2015

कविता-३१ : "कलम और मैं..."


हे कलम...
मैंने तो न्याय ही
माँगा था
और लिखा भी...
अब !
पढने वालो ने
अन्याय किया तो
क्या दोष
तेरा और
मेरा ??

मेने तो तुझसे
प्यार ही मांगा था
और !
लिखा भी...
अब
देखने वालो ने
गिला दिया तो
क्या दोष
तेरा और
मेरा ??

हे कलम
मेने तो तुझसे
जीत ही मांगी थी
और !
लिखी भी...
अब !
दूसरो ने हार दी तो
क्या दोष
तेरा और
मेरा ??
  
हे कलम
तू और में
एक साथ ही
चले थे...
और !
चलेगे...
साथ है जब तक
तेरा
और
मेरा...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’________

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