मिट्टी का बना मेरा
घर..
घर मे चार कमरे
उनमे एक मेरा कमरा
जहाँ में रहता हूँ
मेरे कमरे के बने एक
आले में
वर्षो से रखे है कुछ
कागज के टुकड़े
जिनमे लिखी थी मेरी
कवितायें
जिन्हें तुकबंदी
करके
लिखा करता था बचपन
में...
उस समय जब मेरे साथी
बुलाते थे मुझे खेलने...
पर!
कागज और कलम ही मेरे
हांथी थे
मेरे घोड़े भी..
और मेरे सारे खेल...
इस साल बरसात बहुत
हुई
हमारे बाजू वाला घर
भी टूटा है
पीछे की दीवारों से
आया पानी
मेरे आले की जवानी
को वृद्ध कर गया
आले की सुरक्षा
शिथिल हो गई
भर गया पानी आले के
भीतर...
और अन्दर उसमें रखी
वर्षो से मेरे
कविताओ के पन्ने
गलने लगे बढती उम्र
की तरह
दीमक लगने लगी
कविताओं के सीने में
इतने सब के बाद भी
पता न लगा मुझे..
पर आज अचानक ही..
सुबह से खोला अपना
आला, पर्दा उठाकर
जैसे देखता है कोई
अपनी नवनवेली दुल्हन को....
देखते ही शून्य हो
गया मेरा मन
जैसे रुक गई हो
साँसे...
क्योकि शेष कागज के
गीले लोंदे
ही दिख रहे थे
मेरे बीते वर्ष , सांसे, जिंदगी
गल चुकी थी..
शेष अबशेष गीले पानी
के बूंदों के साथ,
और भी गीले होते जा
रहे थे अश्रुधारा में...
शेष गीले लोंदो को
बहाने जा रहा हूँ
गंगा में
गंगा होंने के
लिये....!!!
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............ आपका अपना..... 'अखिल जैन'
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