चोट ही तो देता है वो
मेरे हर ही सहारे को...
मेरी मुस्कराहट , उदासी
और कुछ भी
रास कहाँ उसे
मैं दुआ भी करता हूँ तो वो
गाली ही देता है
मेरे प्रसून देता हूँ तो वो
शूल देता है
मैने एक रोज दे दिया चाहत का
आशियाना
पर उसने नफरतो की झमाझम
बारिश ही कर दी....
मेरी मुहब्बत के दामन में
ये अश्रुओं में भीगे
सपनो के टुकड़े मेरे ही तो है
फिर भी चुप ही रहता हूँ क्योकि
इश्क़ जो है उनसे
सोचता हूँ टूट जाती ये चुप्पी
गर
काश वो मेरे रकीब होते I
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.........आपका अपना..... 'अखिल जैन'
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