माँ...
घर के आंगन में है एक पुरानी कोठी
जहाँ बंधती थी गाय
एक समय...
उस गाय वाले कमरे में
रखी है लोहे की पुरानी बड़ी सी पेटी
जिसमे रखे है पुराने कपडे
पापा की शादी का शूट
माँ का लाल जोड़ा
और साथ ही अन्य पुराने कपडे
जिसे माँ ने रखा है
यादगार के रूप में...
इस पुराने कमरे में रहता है
फक्क अँधेरा..
दिन रात चूहे भी मस्त रहते है यहाँ
शांत आराम माहौल में
इन्ही कपड़ो के साथ
रखी थी एक लाल सुर्ख रंग की
ऊन की स्वेटर .
जो खूब पहनी पहले बड़े भाई
फिर मैंने ...
उसके बाद मेरी छोटी बहिन ने भी
हम सब बड़े हो गये पर वो
स्वेटर..उसका गोल गला..
उसकी आस्तीन सब जैसे के तैसे
पर कुछ शरारती चूहों ने
स्वेटर को खा लिया नीचे से कुछ
आज चिलचिलाती ठण्ड में
धोखे से खोली पुरानी पेटी
और देखकर कुतरन स्वेटर की
रख ली ऊपर की जेब में
ये अहसास है स्नेह का
या गर्मी माँ के हांथो की
कि इतनी कड़ाके की ठण्ड में
वो कुतरन मात्र भी उतनी ही गर्मी का
अहसास दिला रही है
जितना उस स्वेटर को पहनने पर होता था
आखिर क्यों न हो ??
वो स्वेटर मेरी माँ ने जो बनाया था...!!!
--------------------------------------------------------
...........................आपका अपना... 'अखिल जैन'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें