तू किन्नर ही रहा
जिन्दगी भर
तेरी पहचान ?
‘त्रिशंकु’
दो तालियों के मध्य
ही
गुजरा पूरा जीवन
जन्म से मृत्यु तक
तेरा मान तेरा वजूद
रहा किन्नर ही…
लोगो की उपेक्षा के
परे
तू हँसता रहा
जीता रहा
देता रहा दुआये
उन्हें उन्ही
खुशियों के लिए
जो तुझे
नहीं हुई नसीब
और तूने पाया
समाज की ओर से
एक प्रश्नचिह्न
अपने जन्म
अपनी पहचान पर
और तेरे प्रश्न का
क्या
जो तुझमें कौंधता
रहा
जननी से
समाज से
पूछने को तू छटपटाता
रहा
सिर्फ एक अंग के
अभाव में
जिन्दगी के साथ तो
ठीक
मृत्यु उपरांत भी
पैरो में घिसट कर दी
गई
यातना तेरी रूह को
ताकि
अगले जन्म न हो सके
तू किन्नर...
पा सके वह पहचान
जिसे ये दुनिया मान
समझती है
जिस के अभाव में
किन्नरता...
छोटी है बहुत
समाज की वैचारिक
किन्नरता से..
जिसके कारण
तू किन्नर ही रह गया…!!!
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___________आपका अपना ‘अखिल जैन’___________
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