ये धूप भी न..
आती है
अरुणोदय के साथ
ही...
मुट्ठी में
पकड़ू-जकडू
पर ...
ठहरती है कहाँ है…
उँगलियों के बीच का
अंतर
भेज ही देता है इसे
अपने ही स्थान में..
और हाँ...
चाँद के साथ
धूप की बेईमानी
क्यों ??
आदि से
अंत तक की दुश्मनी
जन्मो पुरानी रंजिश
ही है..
अब न कहना मुझसे
कि...
मिलाने से
दोस्ती का हाथ
रिश्ते सुधरते हैं
दुश्मनी मिटने लगती
है ..
क्योकि...
कराई थी एक कोशिश
हमने भी दोस्ती
कराने के
चाँद और धूप की...!!!
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_________आपका
अपना___ ‘अखिल जैन’_____
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