फलसफ़ा एक : चाँद
बेवफा क्यों ?
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सुनता आ रहा
हूँ वर्षो से
खबर चाँद के
बेवफा होने की...
नहीं पता क्या
है सच ?
पर
लेख /आलेख/कथा
/कहानी
और कई रचनाओ
में
पढ़ा यह....
पर सोचो चाँद
क्यों हुआ होगा
बेवफा ???
जबकि चाँद तो
आराध्य है
बच्चों का मामा
प्रेयसी का
प्रेम
और सजनी की
निहायत
पूजा पुनीत
करवाचौथ पर ही...
पर क्यों है
चाँद बेवफा...?
ओह...,
याद आया
तुमने ही बताया
था एक बार
कि यारी थी ‘चाँद’
से तुम्हारी ।
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फलसफ़ा दो : 'चाँद
को बेवफा मत कहो'
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बुरा सा लगा
सुनकर कि
चाँद भी बेवफा
है...
कैसे ?
कोई बताओ तो
क्या किया चाँद
ने साथ तुम्हारे
सदियो से देता
रहा
चांदनी/ शीतल
छाँव
और अपने साथ
अनगिनत
टिमटिमाते
तारे...
तुम्हारे नन्ने
मुन्नों की
शरारतो को
समेटा जिसने
बनकर उनकी माँ
का मुँह बोला भाई
तो कभी सुहाग
के अनुराग ने
बांधी रीत की
प्रीत चाँद से ही
जिसे देखकर ही
निगला निवाला
फिर क्यों
बेवफा कहा
चाँद को
तुमने ?
फिर चाँद पूनम
इंदु ये सारे
ही नाम
हो ही नहीं
सकते बेवफा
अखिल आकाश में
सच...!!!
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________आपका
अपना_____ ‘अखिल जैन’____
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