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शुक्रवार, 26 जून 2015

कविता-१८३ : "कविता या तुम..."


एक एक अक्षरों को...
उठाकर.. सजाकर..
एक व्यवस्थित क्रम में लगाकर...
लिखने की कोशिश करता हूँ
मै...
कविता...
होती है की नहीं
क्या पता मुझे ??

पर !
हर अक्षर में
दिखाई जरुर देती हो
मुस्कराती हुई...
तुम...!!!
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_________आपका अपना ‘अखिल जैन’_________

1 टिप्पणी:

  1. जब हर अक्षर में वो ही दिखाई दे तो इससे खूबसूरत कविता और भला क्या हो सकती है...

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